2 माह से ज्यादा समय से लापता प्रो विनय पाठक का 4 लाख रुपए का वेतन कानपुर विश्वविद्यालय ने किया पास।
विपिन सागर (मुख्य संपादक)
कानपुर। छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक भले ही यूपी एसटीएफ की गिरफ्त से दूर हों लेकिन कानपुर विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने उनको कभी दूर नहीं समझा। विनय पाठक 29 अक्टूबर से ही विश्वविद्यालय से नदारद हैं। यूपी एसटीएफ ने अपनी ताकत लगा दी लेकिन पता नही लगा सकी। आरोपों से घिरे कुलपति पाठक को विश्वविद्यालय के अधिकारियों की जी हजूरी के चलते उनका वेतन लगातार उनके खाते में पहुंचाया जा रहा है। बड़ी बात है की लंबे समय से गायब रहने के बाद भी प्रो पाठक वेतन की कमी नही खलने दी विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने, आखिर किस आधार पर विश्वविद्यालय के फाइनेंस अधिकारी ने प्रोफेसर विनय कुमार पाठक का वेतन नवंबर और दिसंबर माह का पास कर उनके खाते में भेज दिया। क्या यूपी एसटीएफ पकड़ने का ढोंग कर रही है या न पकड़ने पर मजबूर है। विश्वविद्यालय के अधिकारियों को सब पता है कहा है प्रो पाठक तभी तो दो माह का वेतन एक बार में ही पास कर दिया।
बड़ी बात यह भी है
कई विशेषज्ञों ने बताया की मेडिकल के आधार पर विश्वविद्यालय के कुलपति का वेतन दिया जा सकता है, लेकिन उनके लिए भी नियम एवं शर्ते होती हैं। जैसे कि मेडिकल जमा होने के बाद ही वेतन पास किया जाता है लेकिन जब विनय पाठक ने विश्वविद्यालय में अभी आकर कार्यभार नहीं संभाला तो एडवांस में फाइनेंस विभाग ने कैसे वेतन पास कर दिया। क्या भ्रष्टाचार में लिप्त विश्वविद्यालय के और अधिकारी शामिल नही हैं।
हालांकि अभी तो मामले ने तूल पकड़ा है। सूत्रों की माने तो एक तरफ प्रोफेसर विनय पाठक को कमाऊ पूत कहा जा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ प्रोफेसर विनय पाठक को कमीशन खोरी का जैम्स बॉन्ड भी कहने लगे हैं।
राजभवन का पाठक पर प्यार मिश्रा को फटकार
सूत्रों की माने तो चारों तरफ प्रोफेसर विनय पाठक और राजभवन के संबंधों के चर्चे जोरों पर है। शिक्षा जगत के लोगों का कहना है जितना स्नेह और प्यार प्रोफेसर पाठक पर राजभवन द्वारा दिखाया जा रहा है। उतना ही गुस्सा एकेटीयू के कुलपति प्रोफेसर मिश्रा के ऊपर राजभवन द्वारा दिखाया गया। आखिर प्रोफेसर पाठक पर क्यों मेहरबान है राजभवन क्या कमाऊ पूत कहे जाने वाली बात बिल्कुल सही है।।
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